एक बार डिबरी गढ नामक स्थान पर एक मेंढ़क रहा करता था । यह बहुत गीला तथा दलदली स्थान था । मेंढ़क सारी रात सुमक वृक्ष के नीचे बिल से टर्र-टर्र किया करता था । उसकी आवाज कर्कश तथा बुरी थी । उस स्थान के सभी पक्षी और पशु उसके गायन से नफरत करते थे । वे उसको टर्र-टर्र करने से रोक नहीं सकते थे ।
मेंढ़क एक मोटी चमड़ी वाला बेशर्म तथा हठी जीव था । जनता की अवहेलना, निवेदन अथवा पत्थरबाजी उसे अपने शोर द्वारा मन की खुशी व्यक्त करने से रोक नहीं सके ।